पता नहीं कितने वर्षों से मैं आदमी की तलाश में भटक रहा हूँ ,लेकिन अभी तक मिला नहीं , और न यही निश्चित है-इस जन्म में वह मिलेगा भी कि नहीं |आप इसे पढ़कर न तो चौंकिये ,न इसे व्यंग्य या मज़ाक मानिये |
आदमी की तलाश में मैं कहाँ-कहाँ गया ,इसे बताने की अपेक्षा यह कहना अधिक सुविधाजनक होगा कि मैं कहाँ नहीं गया अर्थात सब जगह छान मारी |आदमी मिलना तो दूर , परछाई भी नहीं मिली |
इस छान-बीन के दौरान जो मिले वे आदमी न होकर कुछ और थे, मसलन – अध्यापक और छात्र ,डाक्टर और मरीज़ , बिड़ला और भिखारी , मालिक और मज़दूर ,दुकानदार और खरीददार ,जज और अपराधी, इंजीनियर, वैज्ञानिक, पूँजीपति, किसान, बुनकर, कांग्रेसी, कम्युनिस्ट, जनता, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, भारतीय, पाकिस्तानी, अमेरिकन, रूसी-चीनी, काले-गोरे,ज्ञानी-अज्ञानी, सदाचारी-व्यभिचारी, नेता-मतदाता, एम.एल.ए., एम.पी., मंत्री, राष्ट्रपति, पति-पत्नी , भाई-बहन, माता-पिता, शत्रु-मित्र, गुरु-चेला |
उस पर तुर्रा यह है कि आदमी के सन्दर्भ में सबसे बड़ी गर्वोक्ति की गयी है कि आदमी सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है| आदमी की सर्वश्रेष्ठता के समक्ष इतने प्रश्न-चिन्ह लगे हुए हैं कि गिनना असम्भव है | प्रश्न है कि क्या आदमी को सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना जाय , जबकि उसने श्रेष्ठता का कोई भी एक काम नहीं किया है?
वह आदमी सबसे बड़ा अहंकारी था , जिसने सबसे पहले कहा –‘ आदमी सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है’| यह कथन हमें मात्र इसलिये प्रिय लगता है कि हम भी आदमी हैं अन्यथा तथ्य इसके एकदम विपरीत हैं| अगर कोई अध्यापक कहे – मैं इस कॉलेज सर्वश्रेष्ठ अध्यापक हूँ अथवा कोई विद्यार्थी कहे – मैं कॉलेज का सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी हूँ तो ऐसे अध्यापक और विद्यार्थी के प्रति आपकी कैसी धारणा होगी? इसी प्रकार यदि हम अपने देश ,धर्म , जाति को सर्वश्रेष्ठ घोषित कर दें तो क्या यह सच होगा ?
इस सृष्टि में जिसमें हम रह रहे हैं, केवल आदमी ही तो नहीं रहते | अनेक पेड़-पौधे, वनस्पतियाँ, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े तथा अन्य अशरीर धारी रहते हैं |आदमी ने अपनी सर्वश्रेष्ठता का दावा स्वयं ही किया है|यह तो अप्रत्यक्ष रूप से आत्म प्रशंसा है| क्या आदमी को दूसरे जीव-जन्तुओं ने भी श्रेष्ठ कहा है ? क्या हाथी, घोड़े, शेर, पेड़-पौधों से भी इस सन्दर्भ में राय ली गयी है? हमारी सर्वश्रेष्ठ आदमी के अतिरिक्त क्या अन्य जीवों ने भी इसे मान्यता दी है ? सम्भव है कि हाथी भी अपने को सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ जीव समझता हो| केवल आदमी द्वारा आदमी को सर्वश्रेष्ठ कहना अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना है |
सृष्टि के आरम्भ से आज तक आदमी ने एक भी ऐसा कर्म-कार्य नहीं किया है, जिससे दूसरे किसी जीव का थोड़ा सा भी लाभ हुआ हो | आदमी ने दूसरे जीव-जन्तुओं का विनाश किया-शिकार द्वारा | अनेकों को पालतू बनाया अपने स्वार्थ के लिये | हमारी सारी उन्नति और सभ्यता हमारे स्वार्थों की पूर्ति के लिये ही तो है | जितने भी वैज्ञानिक अथवा अन्य आविष्कार हुए हैं वे किसके लिये हैं-आदमी के लिये ही तो ! आदमी ने अन्य जीवों पर शासन किया ,उन्हें गुलाम बनाया | आदमी की शासक प्रवृत्ति ने फिर दूसरे आदमियों पर शासन किया| देशों को पराजित किया , युद्ध हुए |दो-दो विश्व-युद्ध लड़े गये , तीसरे की तैयारी है | करोड़ों आदमी मारे गये| यही सर्वश्रेष्ठता का लक्षण है ? आदमी नामक जीव द्वारा जीव-जन्तुओं का भला करना तो दूर रहा, स्वयं आदमी का भला नहीं कर सका.... नहीं कर सकता है|
थोडा कटुसत्य तो होगा, लेकिन आजकल प्रत्यक्ष ही चारों ओर मूर्खता का कूट राज्य है| आदमी अपने अंदर धन की कमी,अधिकार की कमी, शस्त्रास्त्र की कमी को तो बिना किसी प्रयास के ही जान जाता है लेकिन दुनिया के इस छोर से लेकर दूसरे छोर तक चिराग लेकर ढूँढने पर भी एक आदमी ऐसा नहीं मिलेगा जो अपने अंदर समझ की कमी अनुभव करता हो| सारी धरती विसंगतियों से भर गयी है| आदमी पीड़ा और सन्ताप से इतना भर गया है कि जीवन का कोई अर्थ ही नहीं रह गया है, इससे बेहतर तो मृत्यु ही है|विश्व के तमाम विचारशील लोगों ने आत्महत्या की है| क्या वे नासमझ थे, जिन्होंने अपने आप को समाप्त किया?
दूसरी ओर दुनिया में ऐसे लोग भी हुए,जिन्होंने आत्महत्या न कर, आत्म-साधना का विकल्प चुना,जैसे महावीर, बुद्ध और ईसा | कुछ ऐसे विचारक भी हुये जिन्होंने आत्महत्या तो नहीं की किन्तु दूसरों ने उनकी ह्त्या कर दी ,जैसे गाँधी –मन्सूर | क्या आज के आदमी के समक्ष दो ही विकल्प रह गये हैं – आत्महत्या या साधना का |
कुछ बीच की श्रेणी के लोग हैं, जिन्होंने कोई विकल्प ही नहीं चुना, वे व्यर्थ के बोझ से त्रस्त, जीवन अनुभव से रहित करीब-करीब मृत हैं| हम जो जो कुछ कर रहे हैं, क्या यही जीवन है? या इसके अतिरिक्त भी कुछ और है| अगर है तो वह क्या है? जब तक इसका पता न चल जाए कि वास्तविक जीवन क्या है, तब तक हम कैसे अपने को जीवित कह सकते हैं| आदमी के अंदर कुछ ऐसा भी है, जिसकी कभी मृत्यु नहीं होती |
यूनानी दार्शनिक सुकरात चिलचिलाती दोपहरी में लालटेन लेकर आदमी से भरी सड़कों पर किस आदमी की तलाश कर रहा था, कभी सोचा है आपने? वह आदमी आपके अन्दर भी है| अगर कभी आपका उससे सामना हुआ तो वह आपके जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि होगी|
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