प्रमेय (1)
मनुष्य और कुत्ता
कल्पना किया
बुद्धि वैभव सम्पन्न
धरती का कन्चन
प्राणि-जगत आभूषण
अद्वितीय सृष्टि-प्रणयन
बाह्य-सौन्दर्य मण्डित
पर,
ह्नदय-सत्य से वंचित
विश्व का आश्चर्य
यह अभिनव मनुष्य
यह बुद्वि-जीवी पशु
पशु से भी अधम
ह्नदय से निर्मम
मानव उर की विभूति से रीता
जी हाँ,
यह तो
कुत्ते से भी गया बीता।
आप कहेंगे
क्यों भाई ?
यह कैसे ?
कैसे ?,
तो,
सुन लो, बन्धु!
खूब ध्यान से
अब
प्रमेय उपपत्ति-
ताकि
तुम्हारे साथी-जन को
हो न जाय आपत्ति।
रेखा गणित पुराण का
पिछला प्रमेय कहता है-
स्वान-रसना में
अमृत-रस होता है
जो व्रण-पूरक, क्षत-नाशक होता है
परन्तु,
नर-रसना में
रस ना,
विष भारी होता है।
स्वान तो सदा
अनजाने को
काटता है
परंतु, नर,
नर तो
जाने पहचाने को
डसता है
जो ज़रा भी
जिसकी वफ़ा का यक़ीन करता है
क़सम ख़ुदा की
उसी से फ़रेब खाता है।
यही नहीं,
कुक्कुर तो, प्यार से
पुच्छ चालन करता है
पर, मानव,
मानव क्षुद्र स्वार्थ हेतु
पुच्छ चालन करता है
और, इसीलिए, भाई,
मैं बार-बार कहता हूँ
क्या, बुरा करता हूँ
कि
यह मनुष्य
जी हाँ
यह अमिनव मनुष्य -
यह तो
कुत्ते से भी गया-बीता है ।
बस,
यही सिद्ध करना था ।।
प्रमेय (2)
मनुष्य और सर्प
कल्पना किया
विश्व एक त्रिभुज है।
मानव और सर्प
उसकी दो भुजाएँ
सिद्ध करना हैं
त्रिभुज की पहली भुजा
यानी मनुष्य
लम्बाई में
उसकी दूसरी भुजा
यानी सर्प से
बड़ी है।
हैरत-अंगेज़ हैं
सुनकर आप ?
नही, चौकें नहीं
वरन् , सुन ले केवल धैर्य से प्रमेय की
उपपत्ति-
दोनों द्विजिह्न
दोनों द्विमुख
दोनों कुटिल गामी
गुप्त-दंशन में पटु
दोनों सफल-कामी
काट कर क्षण में ही
पलट जाते
मानव और सर्प - दोनों नामी।
पर,
साँप का तन-मन एक-सा
कोई नहीं इससें माया
मानव के मन में पाप
ऊपर से कंचन-काया।
साँप के डसने का
मंत्र मानव जानता है
किन्तु
मानव के डसने का
मंत्र मानव न जान पाया
बन्घु !
इसलिए कटुता, तीक्ष्णता और ज़हरीले-पन में
त्रिभुज की पहली भुजा
यानी मनुष्य
लम्बाई में
उसकी दूसरी भुजा
यानी सर्प से
बड़ी है।
बस, यही सिद्ध करना था ।।
ganit ke parimay ki maanv aur sarp se tulna achhi lagi.. sundar
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