चाँद !द्वार खोलो ...
आरती उतारूँगा चाँद !द्वार खोलो !
चाँद आज वारूँगा वदन द्वार खोलो !!
अंधकार आया है
रोशनी डरी सी है
किरन की मुरलिया में
गूँज नव भरी सी है
प्यार को पुकारूँगा नयन द्वार खोलो!
आरती उतारूँगा चाँद !द्वार खोलो !
सुहागिन कली का मन
ताप ने जलाया है
हास के हिमालय को
अश्रु ने गलाया है
दामिनी दुलारूँगा सघन द्वार खोलो !
आरती उतारूँगा चाँद ! द्वार खोलो !!
अधर पर न भौरों के
अब कोई तराना है
ज़िन्दगी सिसकती है
दर्द यह पुराना है
सुरभि से बुहारूँगा सुमन द्वार खोलो!
आरती उतारूँगा चाँद ! द्वार खोलो !!
कमाल की प्रभावशाली रचना ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !