बुधवार, 20 जुलाई 2011

मैं संघर्ष किया करता हूँ

(1)
मैं संघर्ष किया करता हूँ।
जगती का यह ध्येय अटल है,
जीवन में अजीब हलचल है,
यह तूफान गगनभेदी है
इसकी भीषणता निश्चल है।
एक बार जग मुझको मैं भी,
जग को देख लिया करता हूँ।।
(2)
देख चुका संसृति का बन्धन,
क्षण में हर्ष उसी क्षण क्रन्दन।
फिर भी भ्रान्ति लिये मानस में,
मरुथल को समझा नन्दन वन।
आशा तथा निराशा से मैं,
क्रमशः युद्ध किया करता हूँ।
(3)
हैं जलती चिता ज्वालायें
हृदय बना पाषाण शिलायें
फिर भी पिघल बरस जावेगा
सुन-सुन कर मेरी विपदायें
विष को अमृत समझ प्रेम से
अगणित घूँट पिया करता हूँ।।
(4)
कैसे जग को अपना समझूँ,
नश्वरता भी सपना समझूँ,
जो मैनें, आँखों देखा है
कैसे इसे कल्पना समझूँ
एक अपरिचित भ्रमित पथिक सा
जग में व्यर्थ जिया करता हूँ
मैं संघर्ष किया करता हूँ।।

1 टिप्पणी:

  1. बहुत बढ़िया सारगर्भित रचना भावनाओं को साहित्यिक शब्दों के साथ प्रस्तुत करने के लिए आशीष जी आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं..
    आपका लेखन बहुत ही उच्चकोटि का है...

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