गुरुवार, 19 जनवरी 2012

मैंने चरण धरे जिस पथ पर

वही डगर बदनाम हो गई

मंजिल का संकेत मिला तो

बीच राह में शाम हो गई

मेरे पथ पर शूल बिछाकर

दूर खड़े मुस्काने वाले

दाता ने संबंधी पूछे

पहला नाम तुम्हारा लूँगा ....(अपूर्ण )

गुरुवार, 12 जनवरी 2012





चाँद !द्वार खोलो ...

आरती उतारूँगा चाँद !द्वार खोलो !

चाँद आज वारूँगा वदन द्वार खोलो !!

अंधकार आया है

रोशनी डरी सी है

किरन की मुरलिया में 


गूँज नव भरी सी है

 प्यार को पुकारूँगा नयन द्वार खोलो!


आरती उतारूँगा चाँद !द्वार खोलो !

सुहागिन कली का मन 

ताप ने जलाया है  

हास के हिमालय को 

अश्रु ने गलाया है

दामिनी दुलारूँगा सघन द्वार खोलो !

आरती उतारूँगा चाँद ! द्वार खोलो !!

अधर पर न भौरों के 

अब कोई तराना है 

ज़िन्दगी सिसकती है 

दर्द यह पुराना है 

सुरभि से बुहारूँगा सुमन द्वार खोलो!

आरती उतारूँगा चाँद ! द्वार खोलो !!